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*🥀 ईदुल फ़ित्र स-द-कए फ़ित्र 🥀*
*पोस्ट- 04*
🌾मालिके निसाब मर्द अपनी तरफ़ से अपने छोटे बच्चों की तरफ़ से और अगर कोई मजनून ( या'नी पागल औलाद है चाहे फिर वोह पागल औलाद बालिग ही क्यूं न हो तो उस की तरफ़ से भी स-द-कए फ़ित्र अदा करे
🌾हां अगर वोह बच्चा या मजनून खुद साहिबे निसाब है तो फिर उस के माल में से फ़ित्रा अदा कर दे
*🌾वुजूब का वक़्त*
ईद के दिन सुब्हे सादिक़ तुलूअ होते ही स-द-कए फ़ित्र वाजिब होता है , लिहाज़ा जो शख्स सुब्ह होने से पहले मर गया या गनी था फ़कीर हो गया या सुब्ह तुलूअ होने के बाद काफ़िर मुसल्मान हुवा या बच्चा पैदा हुवा या फ़क़ीर था गनी हो गया तो वाजिब न हुवा
💵और अगर सुब्ह तुलूअ होने के बाद मरा या सुब्ह तुलूअ होने से पहले काफ़िर मुसल्मान हुवा या बच्चा पैदा हुवा या फ़कीर था गनी हो गया तो वाजिब है
*🌾ज़कात और स-द-कए फ़ित्र में फर्क*
ज़कात में साल का गुज़रना , आक़िल बालिग और.निसाबे नामी ( या'नी उस में बढ़ने की सलाहिय्यत ) होना शर्त है
🌾जब कि स-द-कए फ़ित्र में येह शराइत नहीं हैं। चुनान्चे अगर घर में जाइद सामान हो तो माले नामी न होने के बा वुजूद अगर उस की कीमत निसाब को पहुंचती है तो उस के मालिक पर स-द-कए फ़ित्र वाजिब हो जाएगा ज़कात और स-द-कए फ़ित्र के निसाब में फ़र्क कैफ़िय्यत के ए'तिबार से है..
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*🏁 मसलके आला हजरत 🔴*
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