सहरीं व इफ़तार के ऐलानात
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*🥀 सहरीं व इफ़तार के ऐलानात 🥀*
*पोस्ट -15*
✏️ रसूले पाक सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम के ज़माना-ए-पाक में सहरी के औकात की इत्तिला देने के लिये अलग से कोई और तरीका राइज न था मग़रिब और फजर की अज़ानें थीं जिन से लोगो को ख़त्मे सहरी और वक़्ते इफतार का पता चलता था। बाद में इत्तिला देने के जो और तरीके राइज हुए उनमें कोई खिलाफे शरअ बात न हो तो कुछ हर्ज नहीं क्योंकि हर काम अगरचे वह ज़माना-ए-पाक रिसालत मआब मे न हुआ हो लेकिन इसमें कोई खिलाफे शरअ बात ना पाई जाती हो वह जाइज़ है सहरी इफ्तार के लिये भी अगर इस किस्म की आवाज़ से लोगों को मुत्तला किया जाये कि जिसमें मोसिकी, गाने बजाने, राग मज़ामीर का अन्दाज़ न हो सिर्फ आवाज़ हो जिसमें कोई सुर न हो जाइज़ है जैसे नक्कारे, सायरन या सीटी बजाना, गोले दागूना, बन्दूक छोड़ना वगैरह जाइज़ है। और अब चूंकि लाउडस्पीकर से अज़ानें होती हैं जिनकी आवाजें हर शख़्स को आसानी से पहुंच जाती हैं तो सिर्फ अज़ानों ही से काम चलाना ज्यादा बेहतर है और आवाज़ों की अब कोई खास ज़रूरत नहीं है।
लेकिन आजकल रमज़ान के महीने में जो सहरी के एलानात लाउडस्पकीकर से होते हैं इनमें हमारी राय यह है कि लोगों को खत्मे सहरी से सिर्फ एक घण्टा पहले ही जगाया जाये और फिर हर दस पन्द्रह मिनट के बाद एक दो जुमले बोल कर वक़्त बताते हें रात के वक़्त में लाउडस्पीकर के इतने इस्तेमाल की इजाज़त बहुत काफी है।
सहरी में हल्की फुल्की और मामूली गिज़ा खाना सुन्नत है तरह तरह के खाने पकाकर लवाजमात के साथ ठूस कर सहरी खाना पसन्दीदा नही है।
हदीस पाक में है रसूले खुदा सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया
मोमिन के लिये बेहतरीन सहरी छुआरे या ख़जूरे हैं। इससे ज़ाहिर है कि दूसरे खाने भी खाये जा सकते हैं लेकिन हदीस पाक से यह अन्दाज़ा हो जाता कि ज़्यादा बेहतरीन गिज़ा वह है। जिसको तैयार करने पकाने की ज़रूरत न पड़े हां पकाई और तैयार की हुई चीजें भी खाई जायें तो उनमें ज़्यादा एहतमाम व इन्तिज़ाम से बचा जाये क्यों कि सहरी में खूब पेट भर कर खाना सुन्नत के ख़िलाफ़ है तो उसके लिये खाना तैयार करने वाली घर की औरतों या नौकरों व नौकरानियों को आधी रात से उठाने और जगाने की क्या ज़रूरत है।
कुछ घरों में तो गर्मियों में खाना बनाने वाली औरतों की सारी रात तरह तरह के खाने तैयार करने में गुज़र जाती है यह इनके साथ एक तरह की ज़्यादती है और अपने ऐश व आराम के लिये दूसरों को परेशान करना मोमिन की शान नही । और सहरी में जब हल्की फुल्की सादा गिज़ायें सुन्नत और ज्यादा एहतमाम व इन्तिज़ाम और तरह तरह के खाने पकवाना और खाना बे ज़रूरत है। तो कई कई घण्टे पहले से लाउडस्पीकर के ज़रिये हंगामा और शोर मचा कर मखलूके खुदा को जगाने बल्कि सताने की क्या ज़रूरत है। आधा घण्टा तैयार करने और आधा घण्टा खाने के लिये काफी है। और जो ऐश पसंद सारी रात तरह तरह के खाने पकाने पकवाने और खाने में ही गुज़ार देते हैं तो उनकी वजह से सबको उठाने की क्या ज़रूरत है।
*📚रमज़ान का तोहफ़ा सफ़हा 22,23*
*✍️ मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी*
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