लाउडस्पीकर का बेजा इस्तेमाल
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*🥀 लाउडस्पीकर का बेजा इस्तेमाल 🥀*
*पोस्ट- 16*
✏️ सहरी खाने पकाने के वक़्त मुसलसल लाउडस्पीकर के ज़रिये नाते नज़्में या तकरीरे सुनाना या इनकी कैसेट बजाना किसी सूरत मुनासिब नही है बल्कि इस में नुक्सान और गुनाह का पहलू भी निकल सकता है।
हो सकता है कोई बन्दा-ए-ख़ुदा इबादत व तिलावत में मशगूल हो और आप उसके काम में खलल डालते हों अल्लाह तआला की इबादत और कुरआन की तिलावत और ज़िक्र व शुक्र तस्वीह वगैरह का यह सबसे उम्दा और अफ़ज़ल वक़्त है।
मुसलमानों में बहुत से लोग वह भी हैं जिन पर रोज़े फर्ज नही मसलन हैज़ व निफ़ास वाली औरतें, मुसाफ़िर, सख़्त बीमार, बहुत ज़्यादा बूड़े छोटे बच्चे उनकी नीन्द ख़राब करना बज़ाये मोमिन है कुछ घरों में गुम व रंज सदमे का माहौल होता है लाउडस्पीकर की तेज़ आवाज़ इनके लिये बड़ी मुसीबत से कम नहीं होती।
जहां आसपास गैर मुस्लिमों की आबादियां हैं इनको आप के रोज़े से क्या मतलब उनकी नीन्दें ख़राब करना उन्हें बे मकसद परेशान करना ख़िलाफ़े मसलेहत बल्कि ख़िलाफ़े मज़हब है क्योंकि इस तरह हमारे मज़हब की गलत शक्ल व सूरत लोगो के ज़हन में आयेगी कि यह आम आदमी को परेशान करने वाला और आधी आधी रात से उनकी नींदें ख़राब करने वाला मज़हब है वह अपने मज़हबों और धर्मों के नाम पर कुछ भी करें लेकिन हमारे मज़हब की सही और असली शक्ल व सूरत दुनिया के सामने आना चाहिये क्या आप ने कभी गौर किया कि क्या वजह है कि हमेशा गैर मुस्लिम तो मुसलमान बनते आये हैं और आज भी बनते हैं लेकिन कोई मुसलमान कभी किसी दूसरे मज़हब में दाखिल नही होता ख़्याल रहे। कि यह तभी तक है जब तक हमारे मज़हब का असली चेहरा दुनिया के सामने रहेगा।
मेरे ख्याल में तो इस वक़्त हिन्दुस्तान में जितने मज़हबी और मसलकी झगड़े लड़ाईयां और फसाद होते हैं उनमें बड़ा दखल लाउडस्पीकर के बे जा इस्तेमाल का है।
इसमे कोई शक नहीं कि हक पसन्दो को भी कभी कभी मज़हब व जान व माल इज्ज़त आबरू की हिफाज़त के लिये हथियार उठाना पड़ जाते हैं लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि मज़हब लड़ाई दंगो मारकाट से न फैले हैं न फैलते हैं। और लाउडस्पीकर के लिए झगड़े लड़ाइयां करना बे मकसद है।
और अब तो बहुत दूर तक आवाज़ फेकने वाले माइक्रोफोन चल पड़े हैं और हर छोटी बड़ी महफ़िलों, मजलिसों, जलसों के लिये वह ज़रूरी से होते जा रहे हैं यह कोई ज्यादा अच्छी बात नहीं है। ऐसा लगता है कि दीन जो दिलों में था वह जुबानों पर आया औरशफिर वहाँ से निकलकर लाउडस्पीकर में पहुँच गया दिल व ज़बान सब खाली से हो गये।
मैंने कई जगह की रिर्पोटें सुनी हैं कि किसी नई जगह नमाज़ शुरू की गई तो किसी को एतराज़ न हुआ लेकिन जब लाउडस्पीकर लगाकर धांसू तकरीरें वहाँ की गई नातों नज़मों की कैसिटे बजाई गयीं तो गैर मुस्लिमों के कान खड़े हुये और फिर जो नमाज़ व जमाअत होने लगी थी वह भी रुकवा दी गई।
बात का खुलासा और निचोड़ इस वक़्त यही है कि रमज़ान में सहरी पकाने खाने के औकात में मुख़्तसर ऐलान के ज़रिये थोड़ी थोड़ी देर के बाद लोगों को वक़्त की इत्तेला देते रहें यही काफी है कैसेट लगाने और नाते नज़में और तकरीरें सुनाने के लिये यह मुनासिब वक़्त नहीं है।
*📚रमज़ान का तोहफ़ा सफ़हा 24,25*
*✍️मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी*
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