रोज़े के मकरूहात
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*🥀 रोज़े के मकरूहात 🥀*
*👉 पोस्ट- 8*
✏️ मकरूह का मअना व मतलब वह काम है कि जिनके करने से रोज़ा तो नही टूटता लेकिन सवाब में कमी होती है। और बार बार ऐसा करने से गुनाहगार और अज़ाब का हक़दार होता है।
झूट, बदी, गीबत, चुगली खाना, गाली देना, बेहूदा बाते करना यह सब काम नाजाईज़ गुनाह हैं, रोज़े में और ज़्यादा गुनाह हैं इनसे रोज़ा मकरूह हो जाता है और उसका नूर जाता रहता है।
बे ज़रूरत किसी चीज़ को चखा या चबाया और थूक दिया हलक, घांटी में इसका कोई हिस्सा न गया तो ऐसा करना रोज़े में मकरूह है। और अगर कुछ हिस्सा गले में उतर गया तो रोज़ा न रहा।
खाना पकाने वाली औरत अगर उसका शौहर या मालिक बद मिज़ाज और ज़ालिम है तो वह नमक चख सकती है जब कि वह फौरन थूक दे। कोई ऐसी चीज़ खरीदी कि बगैर चखे खरीदने से नुक़्सान हो सकता है तो चख कर देख सकता है फौरन थूक देना यहां भी ज़रूरी है।
बीवी को चूमना, छूना, गले लगाना रोज़े मे मकरूह है जबकि यह ख़तरा हो कि ऐसा करने से बे काबू हो जायेगा और अपने ऊपर कंट्रोल नहीं कर सकेगा और हम बिस्तरी कर बैठेगा और यह खतरा न हो और अपने ऊपर पूरा भरोसा हो तो चूमना छूना लिपटना जाईज़ है। मगर अपने नफ़्स पर भरोसा करना नही चाहिये। शैतान इंसान का खुला दुश्मन है और हर वक़्त साथ लगा है।
ऐसी ख़ुशबू जिसमें धुंआ न हो इस को सूंघने से रोज़ा मकरूह नही होता। धुएँदार ख़ुशबू भी अगर नाक में आ जाये तो इसमें कोई हर्ज नहीं हां खूब जोर लगाकर करीब से कसदन जानबूझकर इतना सूंघना कि धुंआ हलक या दिमाग में पहुंच जाये रोज़े को तोड़ देता है।
*📚 रमज़ान का तोहफ़ा सफ़हा 11,12*
*✍️मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी*
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