नमाज़ मे ज़्यादा लम्बी क़िरअत मकरूह है
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*🥀 नमाज़ मे ज़्यादा लम्बी क़िरअत मकरूह है 🥀*
*👉 पोस्ट-10*
✏️ नमाज़ में इतनी लम्बी किरत कि आम नमाज़ी रंजीदा परेशान हो पसंदीदा नही है बल्कि मकरूह व ममनूउ है। बुखारी व मुस्लिम की हदीस पाक में है कि सहाबी-ए-रसूल हज़रत मुआज़ बिन जबल रदिअल्लाहु तआला अन्हु अपनी कौम को नमाज़ पढ़ाते इशा की नमाज़ में सूरह बकर तिलावत की कुछ लोगो ने हुजूर से शिकायत की तो हुज़ूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम नाराज़ हो गये और फ़रमाया!
ऐ माअज़ क्या तुम लोगों को आज़माईश में डालते हो!
*📚 मिशकात बाबुल क़िरत सफ़हा 179*
इसके अलावा बुखारी व मुस्लिम की ही दूसरी हदीस में है। हुज़ूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया।
जब तुम में से कोई शख़्स लोगों को नमाज़ पढ़ाये तो हल्की पढ़ाये क्योंकि उनमें कमजोर बीमार और बूढ़े लोग भी है और जब अकेला पढ़े तो चाहे जितनी लम्बी पढ़े।
*📚 मिशकात बाबुल इमामत सफ़हा 101 बुखारी ज़िल्द1 सफ़हा 97*
और इस्लामी मिजाज यही है कि नमाज़ की जमाअत हो या कोई ज़िक्र की महफ़िल और मजलिस जो काम आम लोगो को शामिल करके किया जाये उसमें इख़्तिसार महबूब व पसंदीदा है। दीन के नाम पर ज़्यादा देर तक लोगों को रोकना उन्हे उलझन व परेशानी व आज़माईश में डालना हरगिज़ मुनासिव नही है और उनकी इस्लामी दीनी मुहब्बत का गलत इस्तेमाल है।
हां अगर अकेले हो तो रात दिन हर वक़्त ज़िक्र व शुक्र करें नअते नज़्में पढ़े तो कोई हर्ज नहीं है। मगर आज इस का उल्टा हो गया है। अब अकेले में ज़िक्रे *ख़ुदा तआला हुज़ूर सल्लललाहु अलैहे वसल्लम* पर दुरूद या आपकी नअत पाक पढ़ने वाले तो न होने के बराबर हैं। पब्लिक के सामने सारी-सारी रात पढ़ने और बोलने वालों की ताअदाद बहुत बढ़ गई है।
हदीस मे है हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने फ़रमाया।
एक ऐसा ज़माना आयेगा जिसमें खतीब व मुक़र्रर ज्यादा होंगे और इल्म वाले कम होंगे। (मिनहाज उल आबेदीन" ईमाम ग़ज़ाली) और सय्यदना इमाम हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं।
जो शख़्स रमज़ान में तरावीह की नमाज़ में इमामत करे वह मुक्तदियों पर आसानी करे। ऐसे ही हदीस की एक मशहूर किताब मुसन्नफ अब्दुल रज़्जाक में है।
हज़रत उमर फारूके आज़म रदिअल्लाहु तआला अन्हु रमज़ान में तीन क़ारी नमाज़ पढ़ाने के लिये मुक़र्रर फ़रमाते जो सबसे तेज़ क़िरत करने वाला होता उस को एक रकअत में तीस आयतें पढ़ने का हुक्म देते दरमियानी क़िरत करने वाले को पच्चीस आयतें और आहिस्ता आहिस्ता ठहर-ठहर कर पढ़ने वाले को सिर्फ़ 20 आयते पढ़ने का हुक्म देते।
*📚 शरह सही मुस्लिमशमौलाना गुलाम रसूल सईदी ज़िल्द 2 सफ़हा501*
यह उस ज़माने की बातें हैं कि जब लोग ज़िक्र व तिलावत नमाज़ व इबादत को जान व माल बीवी बच्चों से कहीं ज़्यादा अच्छा समझते थे आज की दुनिया में पब्लिक को जमा करके तरावीह की नमाज़ में एक एक दिन में कई कई पारे पढ़ना जलसो महफ़िलों में सारी सारी रात जगाना नियाज़ो फातहाओं में घन्टों बैठाना कौम को जोड़ना नही बल्कि तोड़ना है और लोगों को दीन से करीब लाना नहीं बल्कि दूर करना है। खुदाये तआला समझ अता फ़रमाये!
*📚 रमज़ान का तोहफ़ा सफ़हा 14,15,16*
*✍️मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी*
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