रमज़ान के रोज़ों की अहमियत
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*🥀 रमज़ान के रोज़ों की अहमियत 🥀*
*👉 पोस्ट- 2*
✏️ रमज़ान के रोज़े इस्लाम की पाँच बुनियादों में से एक बुनियाद और सबसे ज्यादा अहम व ज़रूरी अहकाम में से एक हुक्म है, जान बूझकर रमज़ान के रोज़े न रखने वाला सही मआना में मुसलमान नहीं है सिर्फ़ एक रोज़ा रखकर बे वजह तोड़ देने की दुनिया में सज़ा बदला जिसे कफ्फ़ारा कहते हैं वह यह है कि एक गुलाम आज़ाद करे या फिर साठ रोजे लगातार रखे या फिर साठ मिसकीनों को दोनो वक़्त का खाना खिलाये और तोबा करे *कुरआन करीम* में जगह जगह और सैकड़ो हदीसों में रमज़ान के रोज़ों का ज़िक्र मौजूद है अगर कोई शख़्स रमज़ान का सिर्फ़ एक रोज़ा जानबूझकर छोड़ दे और साल के 330 दिन रोजे रखे तो वह इसका बदला नहीं हो सकते जिसके फ़राइज़ पूरे न हों उसका कोई नफ़िल कबूल नहीं है!
रमज़ान में रोजे न रखना तो बहुत बड़ा गुनाह है और सख़्त हराम है लेकिन उनकी फ़र्जियत का इनकार करना यानि यह कहना कि यह कोई ज़रूरी काम नहीं है कुफ्र है और यह कहने वाला काफ़िर हो जाता है। ऐसे ही रोज़ों की या रोज़ेदारों की रोज़े की वजह से हंसी उड़ाने मज़ाक बनाने वाला भी मुसलमान नहीं रहता जैसे कुछ लोग कह देते हैं कि रोज़ा वह रखे जिसके घर खाने को न हो ऐसा कहने वाला इस्लाम से ख़ारिज हो जाता है ऐसे ही यह मिसाल देना कि नमाज़ पढ़ने गये थे रोज़े गले पड़ गये यह भी कल्मा-ए-कुफ्र है।
*📚 रमज़ान का तोहफ़ा, सफ़हा 3,4*
*✍️मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी*
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