एतिकाफ़ का बयान

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*🥀 एतिकाफ़ का बयान 🥀*



*पोस्ट- 18*

✏️ रमज़ान शरीफ के आख़िरी अशरे में मस्जिद जमात (जिस मस्जिद में बा जामाअत नमाज़ अदा की जाती है।) में एतिकाफ की नीयत से ठहरना सुन्नते मुअक्किदा किफाया है। अगर मुहल्ले बस्ती का एक शख़्स अदा करे तो सबके जिम्मे से उतर जायेगा और कोई न करे तो सब तारिके सुन्त हुए। बीस तारीख़ को सूरज डूबने से कुछ पहले मस्जिद में पहुंच जाए और फिर 29 को चांद देखकर या 30 को सूरज डूबने के बाद मस्जिद से बाहर आए। जो एतिकाफ़ करे उसके लिए इन दिनों में हर वक़्त मस्जिद में ही रहना ज़रूरी है। पाखाने, पेशाब, गुस्ले फर्ज या दूसरी मस्जिद में जुमा पढ़ने के लिए मस्जिद से बाहर जा सकता है। जब कि जिस मस्जिद मैं एतिकाफ़ के लिये बैठे हैं उस में जूमा न होता हो इस किस्म की शरई या तबई ज़रूरतों के बगैर बाहर आने से एतिकाफ टूट जाएगा।

*हज़रत सदरुश्शरीया मौलाना अमजद अली साहब रहमतुल्लाह तआला अलैह* ने लिखा है कि फ़नाऐ मस्जिद यानी मस्जिद के अन्दर की वह जगहें जो नमाज़ के अलावा दूसरे कामों के लिए बनायी गयी हैं, जैसे गुस्ल ख़ाना, जूते उतारने की जगह। ऐसी जगहों में आने से एतिकाफ नहीं टूटता। 
*📚 (फतावा अमजदिया, जिल्द 1, सफ़हा 399)*

फ़कीहे मिल्लत हज़रत मुफ्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी साहब रहमतुल्लाह तआला अलैह ने भी यही लिखा है।
*📚 (फतावा फैजुर्रसूल, जिल्द 1, सफ़हा 535)*

एतिकाफ में बैठने वाला मस्जिद के अन्दर ज़िक्र व तिलावत, नफ्ल नमाज़, दुरूद शरीफ़ वगैरह में मशगूल रहे। दीनी इस्लामी किताबों का मुताला, दीन की बातें सीखना सिखाना, पढ़ना पढ़ाना भी बेहतरीन इबादत है। और मोतकिफ़ के लिए यह सब जाइज़ है। दुनियवी बातें करने से भी एतिकाफ नहीं टूटता। लेकिन ज्यादा दुनियवी बातें करने से एतिकाफ बे नूर हो जाता है और सवाब में कमी होती है। कुछ लोग एतिकाफ में ख़ामोश और चुप चाप बैठे रहते हैं और इसी के मकसद चुप रहने को इबादत और सवाब का काम समझते हैं । यह उनकी ग़लतफ़हमी है। एतिकाफ़ में चुप रहना भी जाइज़ है लेकिन सिर्फ़ उसको इबादत व सवाब समझना जहालत व बेवकूफी है। मोतकिफ़ के लिए मस्जिद में खाना पीना, लेटना बैठना और सोना जाइज़ है।

*📚रमज़ान का तोहफ़ा सफ़हा 32,33*

*✍️मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी*
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