अलविदा का बयान

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*🥀 अलविदा का बयान 🥀*



✏️ जुमअतुल-वदाअ रमज़ान शरीफ़ के आख़िरी जुमअ को कहने लगे हैं। यह कोई इस्लामी त्योहार नहीं है। रमज़ान के जुमओं की तरह यह भी सिर्फ एक जुमअ है। कर्आन व हदीस में इसकी अलग से कोई खुसूसियत या फज़ीलत नहीं आई है। चूंकि यह रमज़ान शरीफ़ का आख़िरी जुमअ है। अलविदा के माना रूख्सती के हैं। यानि अब रमज़ान का महीना रूख़्सत होने वाला है, इसलिए इसको जुमअतुल-वदाअ कहने लगे। आज के हालात को सामने रखते हुए यह बेहतर है कि इस दिन कोई ऐसा काम या ऐसी कोई बात न की जाए जिससे लोग इस जुमले की अलग से कोई खुसूसियत समझें। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ रहमतुल्लाह अलैह ने भी

*📚 फतावा रज़विया जदीद, जिल्द 8, पेज 455 पर यही लिखा है।*

अलविदा न कहकर इसको सिर्फ़ जुमअ का नाम ही दिया जाए तो ज़्यादा अच्छा है। और इसके खुतबे में वही पढ़ना फ़र्ज, वाजिब या सुन्नत है जो दूसरे जुमओं के खुतबों में है। किसी साल ऐसा होता है। कि रमज़ान के खुतबों में है। किसी साल ऐसा होता है कि रमज़ान की 30 तारीख़ जुमअ के दिन पड़ रही हो तो काफी लोग यह पूछते हैं कि अलविदा कौन-सा जुमअ होगा? क्योंकि अगर चांद 29 को हो गया तो रमज़ान से आगे हो जाएगा। इस तरह का सवाल पूछने वाले सब अनपढ़ और बे-इल्म लोग होते हैं। मैं कहता हूँ कि जब इस जुमअ की कोई खुसूसियत इस्लाम में है ही नहीं तो इसके बारे में पूछने की क्या ज़रूरत है?

*📚रमज़ान का तोहफ़ा सफ़हा 40*

*✍️मौलाना ततहीर अहमद रज़वी बरेलवी*


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*🏁 मसलके आला हजरत 🔴*

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