अहले हदीस (वहाबी) औरतों को मस्जिद, ईदगाह लें जाना

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*🥀 अहले हदीस (वहाबी) औरतों को मस्जिद, ईदगाह लें जाना 🥀*



*✏️ औरतों के लिए मस्जिद में नमाज़ के लिए न जाने का हुक्म है इसके बारे में थोड़ी तफ़सील* 
जी हां हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में औरतें मस्जिद को जाती थी नमाज़ के लिए कियूंकि उस वक़्त मुसलमान क़लील तादाद में थे तो कुफ्फार औरतों को अकेला देख कर सताया करते थे तो हुज़ूर ने हुक्म दिया कि औरतों को भी मस्जिद में ले कर आएं
बहर हाल ये सिलसिला चलता रहा लेकिन बाद में जब हज़रते उमर फ़ारूक़ रदियल्लाहु अन्हु का दौर आया तो उस वक़्त कुछ मुनाफिकीन जो बदनिगाही किया करते थे और इन सब बातों की वजह से फ़ित्ना का अंदेशा था तो हज़रते उमर ने सहाबा को जमा किया और इस बात को ज़ाहिर किया और कहा कि किया हम औरतों को मस्जिद में आने से रोक देना चाहिए
तो इस पर तमाम सहाबा का इज्मअ हो गया यानी सभी ने इसे सही ठहराया, और औरतों को घर पर ही नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया गया
अब जब रोक लगा दी गयी तो औरतें हज़रते आयशा रादियल्लाहु अन्हा की बारगाह में पहुंची और कहा ही हमें हुज़ूर ने इजाज़त दी थी हज़रते उमर हमें मस्जिद में आने से कियूं रोक रहे हैं
तो हज़रते आयशा ने फरमाया की अगर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम होते तो आज की हालात को देख कर हुज़ूर भी औरतों का मस्जिद में आने पर पाबंदी लगा देते जैसे कि बनी इसराइल की औरतों को रोक दिया गया था

🌹फिर तब से यही सिलसिला चल आ रहा है
अब कोई बोले कि जब नबी ने हुक्म दिया था तो हज़रते उमर कैसे मना कर सकते हैं 
तो एक हदीसे पाक याद होनी चाहिए जिसके मफ़हूम ये है कि प्यारे आक़ा सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इरशाद फरमाया
*तुम पर लाज़िम है कि मेरी सुन्नतों पर अमल करो और मेरे बाद मेरे ख़ुलाफ़ा की सुन्नतों पर अमल करो*

*📚 बुख़ारी शरीफ़, जिल्द नंबर 01, सफ़ह नंबर 120, किताबुस्सलात, बाब खुरुजून-निसाई इलल मस्जिद, हदीस नंबर 869*



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